केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वैज्ञानिक समुदाय से किसानों तक पहुंचने और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उत्पादन बढ़ाने में उनकी मदद करने का आह्वान किया है। वे मंगलवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 96वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित एक समारोह में कृषि एवं पशु चिकित्सा वैज्ञानिकों को संबोधित कर रहे थे।
श्री चौहान ने कहा कि देश के अधिकांश किसानों के पास बहुत कम ज़मीन है और उनके लिए आदर्श खेत बनाने की ज़रूरत है। मध्य प्रदेश में अपने अनुभव का हवाला देते हुए, जहाँ उनके मुख्यमंत्री रहते हुए कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई थी, उन्होंने कहा कि अगर कृषि में विविधता लाई जाए तो खेती में किसानों की आय में वृद्धि संभव है। उन्होंने कहा, “पशुपालन, मछली पालन, गेहूं उत्पादन, दलहन और तिलहन में उत्पादन बढ़ाने के लिए काम करना होगा।” उन्होंने कहा कि दालों और खाद्य तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाना सरकार का मुख्य लक्ष्य है। उन्होंने कहा, “अगर यह हासिल हो जाता है तो हमें विदेश से पाम ऑयल आयात नहीं करना पड़ेगा।”
उन्होंने वैज्ञानिकों से यह आकलन करने को कहा कि आईसीएआर द्वारा विकसित 6,000 फसलों की किस्मों में से कितनी प्रयोगशालाओं से खेतों तक पहुँची हैं। उन्होंने कहा, “हमें इस बात पर काम करना होगा कि किसान और वैज्ञानिक कितने जुड़े हुए हैं। जब तक विज्ञान का व्यावहारिक रूप से उपयोग नहीं किया जाएगा, तब तक किसान को लाभ नहीं होगा। इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए कि किसान और कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) कितने जुड़े हुए हैं।”
श्री चौहान ने कहा कि यदि आईसीएआर देश के 731 कृषि विज्ञान केन्द्रों में कम से कम दो वैज्ञानिक भेजे और ये वैज्ञानिक वहां अध्ययन एवं अनुसंधान करें तो इसका लाभ किसानों को मिलेगा।
उन्होंने कहा, “आज हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम भारत को दलहन और तिलहन के मामले में भी आत्मनिर्भर बनाएंगे। इसके लिए सरकार पूरा सहयोग करेगी।” उन्होंने कहा, “सभी वैज्ञानिकों को साल में एक महीने खेतों में जाकर किसानों को पढ़ाना चाहिए। सभी कृषि विश्वविद्यालयों को किसानों के लिए काम करना चाहिए। कृषि विश्वविद्यालयों, वैज्ञानिकों और खेतों को आपस में जोड़ा जाना चाहिए।”
केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने भी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अगर देश पशुधन और मत्स्यपालन क्षेत्र पर ध्यान नहीं देगा, जो जीडीपी में 35 फीसदी का योगदान दे रहा है, तो यह क्षेत्र नीचे गिर सकता है। उन्होंने कहा, “अगर हम इस पर ध्यान दें, तो यह जीडीपी में 50 फीसदी से अधिक योगदान दे सकता है। मत्स्यपालन में हम दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच गए हैं। आज हम 63,000 करोड़ रुपये का सामान निर्यात करते हैं। अगर हम पशुधन और मत्स्यपालन को बढ़ावा दें, तो बहुत लाभ होगा।”
उन्होंने कहा कि पशुपालन विभाग खुरपका-मुंहपका रोग (एफएमडी) के उन्मूलन में लगा हुआ है। उन्होंने कहा, “कई राज्यों में एफएमडी के प्रसार को कम करने के लिए काम किया जा रहा है, भारत में पशुओं को एफएमडी से कैसे मुक्त किया जाए, इस पर काम किया जा रहा है।” आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए उन्होंने कहा कि वर्गीकृत वीर्य और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक पर भी काम किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “आईसीएआर को सस्ती दर पर आईवीएफ लाने के लिए काम करना चाहिए। इससे दो फायदे होंगे – एक, सड़कों पर आवारा पशुओं से मुक्ति मिलेगी और दूध का उत्पादन भी बढ़ेगा।”