हिंदू धर्म में विवाह के नियमों में एक ही गोत्र में विवाह का प्रतिबंध है, और कम से कम तीन गोत्र छोड़ने की आवश्यकता होती है।
गोत्र का महत्व हिंदू धर्म में उच्च है और इसे विवाह संस्कार में महत्वपूर्ण माना जाता है।
गोत्रों का आरंभ सप्तऋषि के वंशजों से हुआ, जो विवाह संस्कार के नियमों को स्थापित करते थे।
गोत्र का मतलब है हमारे पूर्वजों का परिवार, और एक ही गोत्र में विवाह के नुकसान को बताया जाता है।
विवाह के लिए तीन गोत्रों को छोड़ने की परंपरा है, जिससे कोई भी संतानिक समस्या नहीं उत्पन्न होती।
कुछ ज्योतिषी गोत्र के बदलने का मानते हैं, लेकिन यह विचार व्यक्तिगत है और विवाह के नियमों पर कोई प्रभाव नहीं डालता।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक ही गोत्र में विवाह से आनुवंशिक समस्याएं हो सकती हैं, और इसलिए तीन गोत्रों को छोड़ा जाता है।