टाटा ग्रुप, नाम ही सुनके हर कोई इसे पहचान जाता है, इसे परिचय की ज़रूरत ही नहीं पड़ती है। तो दोस्तों, टाटा ग्रुप का नाम जब हमारे सामने आता है तो हमारे दिमाग में टाटा ग्रुप की बहुत सारी कंपनियों के नाम सामने आ जाते हैं। लेकिन, क्या आपको यह पता है कि टाटा की कुल कितनी कंपनियां हैं, और टाटा ग्रुप का इतिहास क्या है?, जब भी टाटा ग्रुप की बात आती है तो हमारे दिमाग में सीधा रतन टाटा का नाम आ जाता है, जो कि भारत के अमीर बिजनेसमैन में से एक हैं। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि टाटा ग्रुप की जीव किसने रखी थी। हो सकता है कि आप यही सोचते हों कि टाटा ग्रुप को रतन टाटा ने स्टेबलिश किया है, जो कि सच नहीं है। हां यह ज़रूर कह सकते हैं कि रतन टाटा ने भी इस ग्रुप को कायम रखने के लिए मेहनत की है, लेकिन इसकी कामयाब स्टोरी के पीछे किसी और का हाथ है, जिनका नाम जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) है। आइए आपको आज टाटा ग्रुप के इतिहास के बारे में बताते हैं।
तो दोस्तों, हम आपको बता दें कि टाटा ग्रुप की कहानी आज से 154 साल पहले शुरू हुई थी, जिसको टाटा ग्रुप के गॉडफादर जमशेदजी टाटा ने शुरू किया था। टाटा नमक से लेकर टाटा के ट्रक और कई अनेक कंपनियों की नींव रखने वाले जमशेदजी टाटा ने इस सफर की शुरुआत जेब में पड़े सिर्फ 21,000 से की थी। और आज तो आप जानते है हैं कि इस कंपनी की शाखाएं कहां तक फैली हैं। जमशेदजी का जन्म 3 मार्च 1839 में गुजरात के छोटे से कस्बे नवसारी में हुआ था। उनके पिता नौशेरवांजी टाटा पारसी पादरियों के खानदान में सबसे पहले बिजनेसमैन थे। जमशेदजी मात्र 14 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ उनके कारोबार में हांथ बटाने लगे थे।
साल 1868 में जमशेदजी टाटा ने सिर्फ 21,000 रुपए से अपना खुद का कारोबार शुरू किया था। जमशेदजी ने सबसे पहले एक तेल का कारखाना खरीदा था, जो कि दीवालिया हो चुका था और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया था। और कुछ समय के बाद जमशेदजी ने इस कारखाने का नाम ‘एलेक्जेंडर मिल’ रख दिया था। जब दो साल बाद उन्होंने इस कारखाने को काफी मुनाफे के साथ बेच दिया। काफी मुनाफा कमाने के बाद जमशेदजी ने उन पैसों से नागपुर में एक रुई का कारखाना खोल लिया था। हम आपको बता दें कि जमशेदजी ने 4 बड़ी परियोजनाएं लगाई थीं, जिसमें एक स्टील कंपनी, एक एजुकेशनल इंस्टीट्यूट, एक वर्ल्ड क्लास होटल और एक जलविद्युत परियोजना भी थी। भारत को एक आत्मनिर्भर देश बनाने की सोच रखते थे जमशेदजी। लेकिन, उनकी इन 4 परियोजनाओं में से सिर्फ एक ही परियोजना पूरी हो पाई थी, जो थी एक वर्ल्ड क्लास होटल। लेकिन जमशेदजी के इस सपनों को उनकी आने वाली पीढ़ियों ने पूरा किया। और इन ही परियोजनाओं की वजह से टाटा ग्रुप की एक अच्छी खासी हैसियत बनी। आइए अब हम आपको मुंबई के एक वर्ल्ड क्लास होटल ‘ताज होटल’ के पीछे की कहानी बताते हैं।
जमशेदजी टाटा अपने एक मित्र के निमंत्रण पर मुंबई के काला घोड़ा इलाके में एक होटल में गए थे, जो कि एक व्यापारी थे। लेकिन इसके बाद जो हुआ वो एक ऐसी घटना है जिसके वजह से आज ताज होटल आपको चमकता हुआ दिखता है। दरअसल, जब जमशेदजी टाटा होटल पहुंचे तो उन्हें गेट से ही वापस भेज दिया गया। उनसे कहा कि यहां पर सिर्फ ‘ गोरे लोग’ यानि अंग्रेज़ों को ही एंट्री मिलती है। जमशेदजी इस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गए, लेकिन उन्होंने इस बेइज्जती का बदला लेने की ठान ली थी। उन्होंने यह फैसला लिया कि वह एक ऐसा होटल बनाएंगे, जहां सिर्फ भारत के ही लोग नहीं बल्कि विदेशी लोग भी बिना किसी रोक टोक के आ सकेंगे। और उसके बाद यहीं से शुरुआत हुई ‘ताज होटल’ की।