मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की एक महिला अधिकारी ने शादी की तो उन्हें बिना कोई कारण दिए नौकरी से निकाल दिया। तो दोस्तों ये तो हर कोई जानता होगा कि ऐसी बहुत सी सरकारी अधिकारी या ऑफिसर होती हैं जो लड़की होती हैं और अपनी नौकरी के कुछ समय बाद वे शादी करती ही हैं, लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है जो ये कहता हो कि अगर आपने शादी कर ली तो आपको नौकरी से निकाल दिया जाएगा। तो आप बताइए क्या आपको लगता है कि ऐसा होना चाहिए या ऐसा होना सही है? हो सकता हो कि आपको यह लग रहा हो कि यह मिलिट्री से जुड़ी कोई नौकरी है तो इसमें ऐसा होता होगा। लेकिन हम आपको बता दें कि इस चीज़ के ऊपर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत बड़ी बात कह दी है जो सबके मन के विचारों का जवाब देने के लिए काफी है।
यह कहानी एक मिलिट्री नर्सिंग सर्विस के परमानेंट ऑफिसर सेलिना जॉन की है जिन्हें 1988 में शादी के बाद नौकरी से निकाल दिया गया था। 36 साल से अपने हक के लिए लड़ रहीं सेलिना जॉन के लिए आखिर कार सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की अधिकारी सेलिना जॉन को 60 लाख रुपए का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून जो महिला कर्मचारियों की शादी या उनके घरेलू कामों की वजह से नौकरी छोड़ने का आधार बनाता है, वह असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब ऐसा कोई भी विभाग नहीं कर सकता है।
आइए अब जानते हैं कि सेलिना जॉन कौन हैं और उन्हें कितना कठिन परिश्रम करने पड़ा अपनी इस लड़ाई को जीतने के लिए।
दरअसल दोस्तों सेलिना जॉन 1982 में दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में ट्रेनी के रूप में शामिल हुईं थीं जिसके बाद उन्हें 1985 में नर्सिंग सेवा में लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन दिया गया और उन्हें सिकंदराबाद में तैनात किया गया। और 1988 में उन्होंने एक आर्मी ऑफिसर से शादी कर ली जिसके बाद ही उन्हें 27 अगस्त 1988 में नौकरी से बिना कोई कारण दिए निकाल दिया गया और उन्हें अपने लिए कोई सफाई पेश करने का भी मौका नहीं दिया गया। जिसके बाद सेलिना जॉन ने अपने निलंबन के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद उन्होंने 2012 में सशस्त्र बल नियायाधिकरण से संपर्क किया, जिसने उनके ही पक्ष में फैसला सुनाया और यह आदेश दिया कि उन्हें बहाल कर दिया जाए। इसके बाद केंद्र ने आदेश के खिलाफ जा कर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपील दर्ज कर दी।
अदालत ने केंद्र के 1977 के उस नियम को खारिज करते हुए कहा कि जिस नियम की सरकार दुहाई दे रही है, जिसमें शादी के आधार पर सैन्य नर्सिंग सेवा की बर्खास्तगी की अनुमति दी गई है उसे 1995 में वापस ले लिया गया था। अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि “ ऐसा नियम सिर्फ मनमानी का था, क्योंकि महिला की शादी हो जाने के कारण रोज़गार समाप्त करना एक भेदभाव है जो असमानता का एक बड़ा मसला है, इस नियम से आदमी औरत के बीच असमानता ज़ाहिर हो रही थी”। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के नियम पितृसत्तात्मक को बढ़ावा देते हैं जिसे स्वीकार करना मानवीय गरिमा को ठेस तो पहुंचाता ही है और साथ ही भेदभाव को बढ़ावा देने के साथ साथ निष्पक्ष व्यवहार को कमज़ोर करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून में किसी भी तरह के लिंग आधारित पूर्वाग्रह को सही नहीं ठहराया जा सकता है, यह संवैधानिक रूप से भी अस्वीकार है। महिला कर्मचारियों की शादी और उनकी घरेलू भागेदारी को पात्रता से वंचित करने वाले नियम असंवेधानिक हैं।