WTO: विश्व व्यापार संगठन में भारत से भिड़ा थाईलैंड। बढ़ा विवाद, भारत ने किया बॉयकॉट।

तो दोस्तों हम आज कल यह देख रहें हैं कि भारत ज्यादातर देशों से अपनी दोस्ती मज़बूत करने में लगा है। अगर देखा जाए तो भारत के दुश्मन देश कम और दोस्त देश ज़्यादा हैं। हमारा भारत अपनी दोस्ती, मेहमानों की इज्ज़त करने के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है। और यही वजह है कि भारत ज्यादातर देशों के साथ अपनी दोस्ती को दिन ब दिन मज़बूत करने की कोशिश में जुटा है। लेकिन हाल ही में, भारत और थाईलैंड की भिड़न हो गई। जो कि चर्चा का विषय तो है ही और साथ ही यह भी देखना है कि छोटे से मसले का बड़ा बवाल ना बन जाए। थाईलैंड ने भारत पर निशाना कसते हुए कुछ बातें ऐसी बोली हैं जिस पर भारत ने आपत्ति जताई है। आइए अब जानते हैं यह कब हुआ और कहा।

अरब एमिरेट्स के अबू धाबी में हो रहे विश्व व्यापार संगठन (WTO) में थाईलैंड के राजदूत पिमचानोक वॉनकोर्पोन पिटफील्ड की एक टिप्पणी से भारत भड़क गया। भारत ने थाईलैंड के साथ WTO में किसी भी चर्चा में शामिल होने से इंकार करते हुए उसे बॉयकॉट कर दिया है। दरअसल, थाईलैंड के दूत ने भारत पर यह आरोप लगाया है कि भारत निर्यात बाज़ार पर हावी होने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खरीदे गए ‘सब्सिडी वाले चावल’ का इस्तेमाल कर रहा है। थाईलैंड की इस ही कूटनीतिक टिप्पणी ने विवाद पैदा हो गया। भारत ने इसका कड़ा विरोध जताया है और साथ ही भारत के वार्ताकारों ने उन समूहों की चर्चा में भी शामिल होने से इंकार कर दिया है, जहां थाईलैंड के प्रतिनिधि मौजूद था। थाईलैंड के राजदूत ने मंगलवार को एक कंसल्टेशन मीटिंग में यह टिप्पणी की थी, जिसका कुछ अमीर देशों के प्रतिनिधियों ने भी सहमति जताई है। इस ही वजह से भारतीय प्रतिनिधिमंडल नाराज़ हो गया। अब इस वजह से ऐसा माना जा रहा है कि थाईलैंड अब अमेरिका , यूरोपीय संघ, कैनेडा और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों के साथ खड़ा है।

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रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने कहा है कि भारत ने थाईलैंड सरकार के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया है और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पियूष गोयल ने यूएसटीआर केथरीन थाई और यूरोपीय संघ के कार्यकारी उपाध्यक्ष के सामने भी इस मामले को उठाया है। भारत के इस कड़े रुख से यह तो स्पष्ट हो गया है कि उसे इस तरह की भाषा और व्यवहार स्वीकार नहीं है। सरकारी अधिकारियों ने टाइम्स ऑफ इंडिया को यह बताया है कि थाई राजदूत ने जो भी कहा है, वह बहुत गलत है और इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने यह कहा कि सरकार खाद्य सुरक्षा दायित्वों को पूरा करने के लिए केवल 40% उपज ही खरीदती है। किसानों की बची हुई उपज का एक हिस्सा भारत से बाज़ार मूल्य पर निर्यात किया जाता है। इसे सरकारी एजेंसियों द्वारा नहीं खरीदा जाता है।

हम आपको बता दें कि कुछ ही वर्षों में, वैश्विक बाज़ार में भारतीय चावल की हिस्सेदारी बढ़ी है। लेकिन भारत द्वारा हाल ही में हो रहे निर्यात प्रतिबंधों से पश्चिमी देशों को भारत ने नाराज़ कर दिया है। विक्सित देश ऐसी तस्वीरें पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें यह दिखाया जा रहा है कि भारत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में सब्सिडी वाला चावल बेचकर वैश्विक व्यापार को बाधित कर रहा है, जो कि सच नहीं है। इसके अलावा भी अधिकारियों ने यह बताया कि नियमों को इस तरह से तैयार किया गया था कि जो व्यापार की शर्तें थीं वे अमीर देशों की ही पक्ष में थीं। उन्होंने कहा कि सब्सिडी की गणना के लिए मूल्य 1986–88 के स्तर पर तय किया गया था। इसका मतलब यह है कि 3.20 रुपए प्रति किलोग्राम से ज़्यादा की पेशकश की गई तो किसी भी कीमत को सब्सिडी के रूप में माना जाएगा।

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लेकिन फिलहाल, ताज़ा विवाद की जड़ थाईलैंड का यह आरोप है कि भारत के चावल निर्यात पर भारी सब्सिडी उसे दी जाती है, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अनुचित लाभ मिलता है। हम आपको बता दें कि WTO के शीर्ष निकाय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की यहां चल रही 13वीं बैठक के दौरान, भारत ने विकास पर आयोजित सत्र में यह कहा है कि ऐतिहासिक रूप से विकास के मुद्दे पर विकसित देशों के वादों को कोई कमी नहीं रही है, क्योंकि हर एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में ‘ऊंची–ऊंची’ बातों पर चर्चा होती रही है। वाणिज्य मंत्रालय ने यह कहा है कि, “ वादे तो बहुत किए गए हैं, लेकिन इस बारे मे कार्रवाई बहुत कम हुई है। और इसकी वजह से अल्प–विकसित देशों सहित विकासशील देशों की समस्याएं और बढ़ गईं हैं।”

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